Tuesday, September 29, 2015

मंथन

देखा है तुमने, 
नीचे उतर कर कभी
भावशून्य चेहरे से 
अंतर्मन को, नारी के ...
तूफ़ान है वेदना का 
अविरल चलता हुआ 
झंझावात कोइ 
और संघर्ष विचारों का... 
फिर भी मुस्कुराती है वो 
सबको समेटे हुए
पिरोते हुए एक माला में 
छुपाये मुस्कुराहटों में अपनी... 
देखें कभी भौतिकता के पार 
भावनाओं के मंथन में 
रिश्तों को पनपते हुए 
पलते हुए, बढ़ते हुए 
उसके आँचल में 
संसार को संवरते हुए 
- आलोक उपाध्याय 

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