Thursday, November 10, 2016

ग्वालियर : जिसकी रूह में बसता है संगीत

ग्वालियर के मशहूर शायर, निदा फ़ाज़ली लिखते है, "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता।" परंतु ग्वालियर में 2 दिन गुज़ारने के बाद, इस  बात पर यकीं नहीं होता।  
सूर्य की पहली किरण से अंतिम किरण तक जो एक अनूठा अनुपम दृश्य आँखों  के सामने रहा है वो कभी अतीत के भूले बिसरे प्रसंगों की याद दिलाता है तो कभी आज के बहुमुखी स्वरुप की।  
शामें हमें हमेशा से ही पसंद रही हैं, परंतु यहां की शाम उन शामों में से है, जिनका  प्रारूप अपने अंतर्मन में लिए, उनका इंतज़ार किया है और उनकी तलाश की है।  
माँ के किस्सों के ज़रिये, ग्वालियर से हमारा बचपन जुड़ा हुआ है। माँ के बचपन के कुछ साल झाँसी और ग्वालियर में बीते थे और वो हमें यहां के किस्से सुनाती थीं बचपन में।  आज वो सब सजीव लग रहे थे। कुछ वर्ष पहले, यहाँ की एक कंपनी का नौकरी के लिए प्रस्ताव आया था, तब दिल्ली के चक्कर में हमने मना कर दिया और आज खुद पर गुस्सा आ रहा था कि, ये गलती क्यों की।  
ग्वालियर घराने का संगीत हो या तानसेन संगीत समारोह, सचिन के शतक का साक्षी कैप्टेन रूप सिंह स्टेडियम हो या ग्वालियर का प्राचीन किला, हिन्दी  या मराठी रंगमंच का सृजन हो या ग्वालियर का अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला , महाराज बाड़े का विशाल परिदृश्य हो या ग्वालियर की तंग संकरी गलियां, जलविलास पैलेस संग्रहालय हो या तानसेन की जन्म और साधना स्थली बेहात में उनकी राग रागिनियों से टेढ़ा पड़ा प्राचीन शिव मंदिर, यहाँ सब कुछ नूतन और पुरातन का अनूठा संगम है।  नए बनते शॉपिंग मॉल्स और कमर्शियल कॉम्पलेक्स के साथ आप यहाँ की मशहूर टोपी बाज़ार और दही मंडी का लुफ्त ले सकते है, जो आप को अनायास ही अतीत से जोड़ देंगे।  
कहते हैं, वर्तमान के पृष्ठों पर भविष्य की कथायें होती है अतीत के स्याही से लिखी।  
थोड़ा अतीत में जाएँ तो, हम पाते हैं कि,  ग्वालियर का अतीत स्वर्णिम रहा है।ये अनूठा शहर सिंधिया रियासत की राजधानी हुआ करता था और इसका नगर नियोजन ( city planning ) सामरिक दृष्टि (war point of view) से किया गया था।
मानसिंह तोमर और मृगनैनी की प्रेम कथाओं से रूपायित यहाँ के महल और ग्वालियर का जिब्राल्टर कहा जाने वाला यहाँ का विशाल किला जिसकी विशाल प्राचीर मौन साक्षी  हैं,यहाँ के अच्छे बुरे, हर घटना चक्र के। 
मशहूर जलविलास पैलेस का रूपांकन ( designing ) एक फ़्रांसिसी द्वारा किया गया था, गाइड ने बताया।  निसंदेह ये पैलेस, तत्कालीन विकास की अंतरराष्ट्रीय समग्रता का एक जीवंत उदाहरण है।  मैंने यूरोप को अभी तक सिर्फ तस्वीरों में या टीवी पर ही देखा है, पर अतिशयोक्ति ना होगी अगर मैं कहूँ कि, महाराज बाड़े और आस पास के क्षेत्र का नज़ारा मुझे काफी हद तक यूरोप की याद दिला रहा था। 
अन्य मशहूर पर्यटन स्थलों में यहां हैं, ऐतिहासिक दाताबंदीछोड़ साहिब गुरुद्वारा, मान मंदिर और गुज़री महल - जिसकी स्थापत्य कला की प्रसंशा किये बिना आप नहीं रह पाएंगे, प्राचीन भित्ति चित्र - जिनका रंग अत्यधिक मनमोहक है, मशहूर ग्वालियर का किला, सिंधिया स्कूल और अनेक प्राचीन भवन और इमारतें।   
मैं यहाँ सड़क मार्ग से आया, पर ट्रेन की सुविधा भी पर्याप्त उपलब्ध है।  पर हाँ, शहर घूमने के लिए, टेम्पो से बेहतर कुछ नहीं यहाँ।  कोई दो राय नहीं की होटल की टैक्सी सेवा ( सर्विस) या Ola Uber etc, आप को आराम से मिल सकता है यहां, पर ग्वालियर की रंगीनियों को आप कैब या टैक्सी से शायद उतना ना देख पायें, जितना लुफ्त उनका आप टेम्पो से सवारी करते हुए ले सकते है।  और हां, किराया काफी किफायती है और बॉडी मसाज फ्री फ्री फ्री।  पर है मजेदार।  


संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा की भूमि ग्वालियर की आत्मा में बसता है संगीत। यहाँ की फ़िज़ा में, हवा में, टोपी बाज़ार की चहल पहल से ले कर मॉल से निकलते युवाओं के फ़ैशन में, टेम्पो वाले की बेबाक़ी में, पत्थरों की कलाकारी में, जलसों से ले कर देर रात की खामोशी में, परिंदों की सुबह की करलव से ले शाम की उनकी उड़ान में ...... ऐसी कोई जगह और क्षण नहीं जिसमें आप को लय, सुर और ताल ना मिले। कहीं सुना था, ग्वालियर में बच्चे भी सुर में रोते हैं और पत्थर भी ताल में लुढ़कते हैं , आज कह सकता हूँ, हां ये सच है।  

ये खूबसूरत शहर अनायास ही आप का मन मोह ही लेता है।  
रात में मन्दारे की माता की पहाड़ी से शहर नज़ारा अद्भुत था।  यूँ लग रहा था मानो, आसमान के सितारे ज़मीं पर आ बिखरे हो और टिमटिमाते हुए, नादान बच्चों की तरह, अठखेलियां कर रहे हों। 

मंदार माता की पहाड़ी पर खड़े हो शहर को देखते हुए अनायास ही मेरे मुँह से निकल जाता है।  
"एक शहर, जहाँ नवीन और प्राचीन का परस्पर मेल हो रहा है, अनुपम, अद्भुत है ये नज़ारा। "  
 
- आलोक उपाध्याय 






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